मन में धीरे -धीरे
विचार के धारा
बह रहल बा
बहत चल जाता
आ हम नदी
के किनार पर
खड़ा बानी भींगत
सोचत सींचत बानी
आत्मा के कियारी
के कुछ पौधा
जे मुरझा रहल बाड़े
नमी के बिना !
विचार के धारा
बह रहल बा
बहत चल जाता
आ हम नदी
के किनार पर
खड़ा बानी भींगत
सोचत सींचत बानी
आत्मा के कियारी
के कुछ पौधा
जे मुरझा रहल बाड़े
नमी के बिना !
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