मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

आत्मा के कियारी

मन में धीरे -धीरे 
विचार के धारा 
बह रहल बा 
बहत चल जाता 
आ हम नदी 
के किनार पर 
खड़ा बानी भींगत
सोचत सींचत बानी 
आत्मा के कियारी 
के कुछ पौधा 
जे मुरझा रहल बाड़े
नमी के बिना !

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