(1)
ऊ देखते रह गइले
ऊ बइठ्ले रह गइले
ऊ बोलते रह गइले
ऊ कुर्सी छोडले ना
ऊ खुसुर–पुसुर करते रह गईले
ऊ लोग फोटो खीचते रह गइल
खाकी देखते रह गइल आ
ऊ खाक में मिल गइले !
(2)
(कहाँ से ई आदमी आके )
पेड़ से लटक गइल
(सब मुद्दा के )
अपना मौत के साथ गटक गइल
दोसर मुद्दा शुरू हो गइल
अरे केतना फूंका फार के,
दहाड़ मार के रोवतार भाई
आ जेकर बाप मर गइल
ओकरा त छुटते नईखे रोआई
अगर रोवले से दुःख बुझाइत
त ई दुनिया रोवते-रोवते
धरती में ना समा जाइत?
(3)
भीड़ जूटल रहे
भीड़ जुटावल रहे
नौटंकी होत रहे
पात्र पेड़ पर चढत रहे
सूत्रधार परदा के पीछे खड़ा रहे
लोग आपन चरित्तर देखावत रहे
(खेती-किसानी पर )
ऊपरवाला के किरिपा बनल रहो
नेता पर जनता के किरिपा बनल रहो
(जिनगी एगो नाटक ह आ हमनी के खिलाडी )
जनता के मनोरंजन होत रहो
कोमेडी सर्कस के मेलोड्रामा चलत रहो !
(4)
नेता के कुछ मुद्दा मिलत रहो
(बेवजह बरसात में )
झींगुर झंझनात रहो आ बेंग बोली बोलत रहो
(पैनल डिस्कशन के नाम पर )
लोग आपस में तूतू-मैंमैं करत रहो
(जहर के असर कहाँ बा पता नइखे, लेकिन )
जंतर-मंतर पर झाड-फूंक चलत रहो
परेता लोग के भी जिनगी
खात-पीयत चलत रहो
(जिनगी में का धइल बा ? )
खेल-तमाशा चलत रहो
आ हमनी के खेल बनल रहो !
(5)
ऊ मर गइल
ऊ दुनिया छोड़
के चल गइल
ऊ के रहल ह?
ऊ का करत रहल ह?
ऊ का चाहत रहल ह?
ओकरा साथै-साथे ई
रहस्य भी चल गइल !
(6)
साठ साल से ऊपर भइल
भारत एगो कृषि-प्रधान देश ह
पढ़त-सुनत कान पाक गइल
प्रजातंत्र के पह्र्रुआ नइखन
ठनकत, अहंकार के अन्हार में
सुतल बाड़े सपना देखतारे
सपना देखावतारे
जमीन से ना जुडला से
हँसुआ, खुरपी कुदारी
में मुरचा लाग गइल
किसान के मुद्दा, जमीन के मुद्दा,
हरही गाय,
अभी ले ना सजाइल,
बकेन त ना हो सकल
बिसुखी जरूर हो गइल l
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