जिनगी कभी-
कभी एक बोझा
हो जाला
जब साथ रहत
आदमी के
मन के कूड़ा
ढोवत-ढोवत
अपना सर पर
चुवे लागेला
ओकरा के पोंछ
त सकेनी
फेंक भी सकेनी
लेकिन ओकरा दुर्गन्ध
से पीछा
छुडावल बड़ा
मुश्किल बा !
कभी सोच के
देंखी
आदमी अपना
जिनगी भर में
केतना कूड़ा
पैदा करता !
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