दूर से आवाज
सुनाई देता
स्काईप पर
कोईल बोलतीया
महानगर में !
महानगर के साथे लागल
कभी गाँव, कभी कस्बा
जईसन लागत शहर में !
कोईल का कह्तीया ?
कि मोजर लागल बा
टिकोरा लउकता
हवा में महकतारे
मदन, मोहतारे प्रान
कोईल का कह्तीया ?
हमार धर उजड़ता,
तहार घर बसsता
हम कहाँ जाईं
काहे खातिर
एतना दूर से
उडी-उडी के
तहरा देस में
उजड़े खातिर आईं!
कोईल का कह्तीया ?
जब पंचकठवा लिखाईल
बाबा आम के बगईचा
लगावे के
कहते-कहते
एह दुनिया से
विदा ले लेहनी,
खाली पडल बा,
भांग जामल बा,
कोईलिया के डर बा
लौट के जाई
त बर्फ में मर जाई
कुछ वईसही डर
हमरो बा !
लेकिन गाँव
हमरा मन
में बसल बा
उ उजडल धर भी
जे अब बस ना पाई !
लेकिन हमरा
मन में
बहुत दूर-दूर ले
शहर भी सहरा अईसन
फईलल बा,
जेतने आगे बढ़त
जातानी
मृग नईखे मिळत,
मृगतृष्णा बा
पीयास लागल बा
कंठ सूखता
हडबडा के उठतानी
सपना टूटता
बुझात नईखे
कोईल का कह्तीया ?
रोवतीया,
गावतीया,
की हमनी पर
हंसतीया...
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