रविवार, 19 अप्रैल 2015

धुंध

झरोंखा से
झाँक के
देखतानी
चारू ओर
धुंध बा
घर से बाहर ले
मन से मानव ले
भीड़ बा भड़ास बा
ह्रदय निरास बा
बात खाली
कहेके कहाता
करेके उहेबा
जे अपना सुहाता
दोसरा के का ठगी
जे अपने ठगाता
लोग का कही
ईहे सोचत-सोचत 
लोग बईठल
रह जाता
देखत देखत
बीत जाता
जिनगी
बचपन रोवता
रोवावता बुढ़ापा
आखिर में
खाली हाथ
धुंध में
आदमी समाईल
चल जाता !

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