कलम-किताब के बीच बतकही
कलम: बहुत दिन पर भेंट भईल बा किताब, हमार सखी सुन तनी आज हमार मन के बात, हमार हिरदया के पीर l
किताब: ठीक बा l लेकिन हमरो रामकहानी तहरो सुनेके परी l
कलम: जरुर सुनब l एगो बात अपना जनम के बारे में बतावे के बहुत दिन से मन रहल ह, कहीं नु$ ?
किताब: बताव बहिनी, जल्दी बताव हम सुने खातिर तैयार बानी l
कलम: त सुन$ सखी, हमार जनम एक कारखाना में भईल रहे l उहाँ हमार कई आउर भाई बहिन भी रहे लोग l
किताब: ना हो, हमरा जहाँ तक ईयाद बा तहार पैदाईस चिरई के पाँख से भईल रहे l देखत नईखु ओईसने जईसन ‘आखर’ के दवात वाला फोटो में खोंसल बा l
कलम: लेकिन हमरा से त कानपुर वाली नवकी काकी इहे कहली !
किताब: ना$ उनका मालूम नइखे, नवका लोग का इतिहास के जानकारी कम बा आजकल l एहिसे जनिह कि ‘आखर’ वाला भाई लोग मुहीम चललवे बा लोग कि इतिहास के जानकारी लोग के रहो l
कलम: एईसे हमरा त कवनो फायदा नईखे बुझात l
किताब: नाही फायदा कlहे नइखे ! आपन इतिहास के जानकारी त जरूरी बा आगे पढ़े-बढे खातिर l अlज के लोग के जाने के चाहिं राजा फ़तेह बहादुर साही, महाराजा चेत सिंह, मंगल पाण्डेय, बीर कुंवर सिंह, ब्रज किशोर बाबु, सच्चिदानन्द सिन्हा, राजिंदर बाबु, बाबु रधुबीर नारायण, राहुल सांकृत्यायन, स्वामी सहजानंद सरस्वती, भिखारी ठाकुर, महेंदर मिसिर, बिसराम, सिद्धेश्वरी देवी, किशन महाराज, सितारा देवी, बिन्ध्यवासिनी देवी, संत कुमार वर्मा, शैलजा कुमारी श्रीवास्तव, डॉ. विवेकी राय, प्रोफेसर रामेश्वर सिंह कश्यप, पाण्डेय कपिल, डॉ. कृष्ण देव उपाध्याय, डॉ. हरी शंकर उपाध्याय, आउर कई लोग के बारे में l
कलम: अरे केतना नाम गिना देह्लु एक के बाद एक, हमरा से ना लिखा पाई, ना ईयाद रही l हम खाली लिखेके जानी ले l हम त एगो लिखे के माध्यम बानी जे लोग के दिमाग में उपजेला ओहीके हमारा से कागज पर उतार देला लोग l
किताब: तब त तहरा ईहो नइखे मालूम कि लिखे के तरीका में केतना चमत्कार हो गईल बा ! कलम त बा लेकिन आज इलेक्ट्रॉनिक कलम आ कीबोर्ड पर लिखत बा लोग l आ हमरो में बहुत बदलाव आईल बा ई-बुक, ऑडियोबुक आउर केतना नया नया बदलाव रोज रोज हो रहल बा l आउर तहरा अपना पुराना इतिहास के भी जानकारी नइखे l तू पुछतारू की इतिहास से का फायदा बा l त सुन$ l इतिहास से कई गो फायदा बा – सबके आपन मूल आउर उत्पति के बारे में जाने के ईच्छा रहेला सुनलु ना की एतना बढहन आदमी होला के बाद, नोबेल आउर नाइटहुड मिलला के बाद भी विदियाधर नैपौल अपना गावें आईल रहले अपना मूल के खोज में, अपना पुरनिया लोग के धरती पर l दूसरे इतिहास के जानकारी से अपना बारे में जानकारी होला जेकरा के हिंदी में ‘अस्मिता’ कहल जाला और अंग्रेजी में ‘identity’ l अब समझ जा की भोजपुरी भाषा के समस्या ओकर ‘identity’ , ओकर स्थान के लेकर बा, ओकर ‘अस्मिता’ के बचावला के लड़ाई बा ना त अगर लोग के भोजपुरी भाषा के इतिहास और संस्कृति के जानकारी ना होई त संसार के आउर भाषा के जईसन बिलाए के कगार पर आ जाई l आदमी के अपना मातृभाषा पर मान होखे के चाँही, ओकरा के बोलला और लिखला में सरम न लागे के चाँही l अगर भाषा बोले वाला ओकर मान-सम्मान ना करी त दोसर काहे करी भला ! सुनले नईखु का$ न्गुगी वा थिओंगो के बारे में जे आपन मातृभाषा ‘गिकुयू’ खातिर अंग्रेजी में लिखल छोड़ देहले l कामनवेल्थ में ई नईकी किस्सा कहेवाली के भासन ना सुनलु ह$ l अरे का नाम ह$ उनकर ? ल ईयाद पर गईल… चिमामानडा अडिची जे अंग्रेजी में लिखतारी लेकिन अपना कबीला, अपना मातृभाषा, अपना संस्कृति, अपना लोक-संस्कार आउर अपना लोक-संस्कार से उपजल भाव के बारे में बहुत गर्व से बात करतारी l आउर दूसरा देस में अपना देस के बड़का लेखक लोग के नाम लेबे में लजात नईखी l तीसर बात ई बा कि अपना भाषा के इतिहास जनला से ओकरा के आगे बढ़ावे के रास्ता निकलेला, एक दिसा निर्धारित करे में आसानी होला l चौथे कि अपना मातृभाषा में लिखल ही ज़रूरी नइखे ओहिमे पढ़ल भी ओतने जरुरी बा भाषा के एक दसा आउर दिसा देबे खातिर, नयापन ले आवे खतिर l लोग के फिजी के सुब्रमणि जी के लिखल “डउका पुरान” आउर शैलजा जी के लिखल “चिंतन कुसुम” जरुर पढेके चाँही जेसे ई पता चलो कि भोजपुरी भाषा के अरज केतना बढ्हन बा, ओहीमें केतना दूर तक रचनात्मक बुनाई हो सकेला आउर केतना दूर तक आगे जाईल जा सकेला आउर सफलता के साथ भोजपुरी के संरचनात्मक संभावना के खोजल जा सकेला l
कलम: हमहूं कुछ-कुछ देखनी ह, ईहे त हमरा के चिंता में डलले बा l ओही बेरा से तहरा के आपन दुःख सुनावेके चाहतानी लेकिन तू त अपने में, जानकारी के सुनावे में, हमार बात सुनते नईखु l आउर ना त खाली भोजपुरी भोजपुरी करतारु l भोजपुरिया भाई लोग जब आपन ख्याल अपने न राखी लोग त लोग राखी का ? काल्हे के बात बतावतानी, हम जेकरा घर में रहिले उ लोग बिहार या उत्तर परदेस कवनो भोजपुरी इलाका के ह लोग l अपना बेटी पर महतारी खिसियात रहुई की “घर में लोग भोजपुरी बोलते हैं इसीलिए तुम हिंदी और अंग्रेजी भोजपुरी की तरह बोलती हो.l” तब हम सोचनी ह की आदमी से अच्छा त हमहीं बानी हमारा से जवने भाषा लिखीं वोही लिखाई ! अभी हम सोचते रहनी तेले उनकर बेटी कहली कि “क्यों, वो बगल के फ्लैट में बुनुल की दीदी जो बैंगलोर में रहती हैं घर में तो भोजपुरी ही बोलती हैं और अंग्रेजी, हिंदी, तेलुगु, अरबी कई भाषाओँ को बोलती हैं l” एपर महतारी कहली ,” चुप रहो, बहुत बोल रही हो आजकल, देख रहे हैं तुम्हारा दिमाग बहुत चढ़ गया है, जो कहा जा रहा है वो करो l” बेटी के करेजा में बहुत चोट लागल, लगली सुबुक सुबुक के रोये l सुनकर उनकर बाबूजी बगल के कमरा से निकलकर अईले, कहले, “मम्मा जो कह रही है वो ठीक ही कह रही है अगर तुम अंग्रेजी भोजपुरी की तरह बोलोगी तो लोग क्या कहेंगे!” एहिसे से कहनी ह$ एहिलोग खातिर ओहिबेरा से भोजपुरी भोजपुरी कईले बाड़ू l जेकरा लोग के अपना भाषा के एतना सरम लागता l तनि बतावत$ एकर कारन का बा ?
किताब: सब बात कह देहनी अब अपना दुःख के बारे में सुन$ केतनो संसार आगे बढ़ जाई लेकिन हमरा जानते जबले संसार में पढ़ाई लिखाई रही तहार आउर हमार जिनगी के कवनो अंत नईखे l लोग के हाथ में स्मार्ट फ़ोन बा, टेबलेट बा, सब बा लेकिन जेब में कलम बा, बोल$ बा की ना? तू त हमरा से बेसी बहरा-भीतर लोग के पाकिट में, बेग में बईठल देस-दुनिया घुमतारू l बिना कलम के केहुके काम चल सकेला भला ! परेसानी त हमारा हो गईल बा l
कलम: बुझौअल मत बुझाव$, जल्दी बताव$, हमार जी घबराता l तहरा का भईल बा ?
किताब: कुछ ना l पहिले हमरा के अलमारी में बंद राखत रहल ह लोग, अब कंप्यूटर में !
कलम: अच्छा !
किताब: अब देख$ झाड-पोंछ सुरु हो गईल अब अलमारी में बंद होखे के समय आ गईल, अब चलतानी, फेरु भेंट होई l
कलम (आँख में लोर भरल): बड़ा अच्छा बतकही होत रहल ह$ l अब देखि कब भेंट होला ! अब त हमार ई हाल हो गईल कि करेजा से हूक उठता ...भावे नाही भवनवा, हो रामा, विदेस गवनवा !
किताब: तू त कहलु कि तहरा कुछ ईयाद न रहेला.. मन के छु लीहलु... भोजपुरी में बहुत मिठास बा ....कवने नगरिया में तोहरा बसेरवा हमरे गईल कब अबगे बटोहिया... आउर बहुत गहीर बात भी बहुत ही सहज भाषा में कहल जा सकेला...सुन$....माया के नगरिया में लागल बा बजरिया, चीजवा बीकेला अनमोल...
अच्छा ई सब बात ता होते रही .... अपना बारे में चिंता मत करिह$, तहरा के दिमाग और मन के जीभ कहले बा लोग l तहरा के हाथ में लेते लोग के दिमाग में नया बिचार आवे लागेला l केतना लेखक लोग आज भी तहरे से लिखता लोग आउर मानल जाला कि तू तलवार से भी बरियार हउ l आ तू ना रहबु त हमार का होई !
कलम: उ सब त ठीके बा, हमरा मन के डर कम करे खातिर बड़हन बड़हन बात कहतारू, हमरा त ईहो डर बा कि आज के नवका जुग के लईका लोग जेंगा अपना पुरनिया लोग के छोड़ देहले बा ओहिंगा हमनी के भी...
किताब: आउर जेंगा भोजपुरी के ओकर संतान...
कलम: ठीके कहतारू, लेकिन हमरा एक बात नइखे बुझात कि आज काल्ह लोग खेत खलिहान के अलावा दूसरो चीज पर काहे नइखे लिखत लोग !
किताब: जईसे पुरनका लोग ओह घरी के ‘सांच’ पर केतना सुंदर लिखलेबा लोग .... फिजिया के टपुआ रुपैया ही रुपैया, बैठले जहजवा में किस्मत बिदेसिया....
कलम: केतना सुंदर ढंग से समय के ‘सांच’ के उकेरल बा l आज जरूरत बा अभी के ‘सांच’ के जेकरा चलते लोग गाँव छोड़ के शहर में जा के बस जाता लोग, औरत के बारे में जे समाज के बदलत नजरिया बा, शादी बिआह के लेके जे बदलाव भईल बा, आउर गाँव क़स्बा में आधुनिकता के चलते जे सामाजिक बदलाव तेजी से हो रहल बा ओ सब चीज के कहानी, उपन्यास, नाटक... में लिखाएके चाँही ना त भोजपुरी के नाव बस सड़क छाप सड़ांध छोड्त गाना गाँव-जवार में ‘सांस्कृतिक प्रदूषण’ फईलावे खातिर रह जाई, आउर भोजपुरी के ‘स्मिता’ पर चोट पहुँचावे खातिर l
किताब: एकदम सही बात कह्लुह$ l लेकिन हमारा समझ से एकाध चीज आउर जरुरी बा भोजपुरी के आगे बढ़ावे खातिर l एक त भोजपुरी के रचना के अंग्रेजी में अनुवाद आउर विश्व साहित्य के बढ़िया बढ़िया रचना के भोजपुरी में (नबीन कुमार भोजपुरिया जी के ईवान बुनिन के कविता के अनुवाद सराहे वाला कदम बा ), दुसर बात कि सबके मिल जुल के भोजपुरी में देस-बिदेस में सेमिनार करावे के जरुरत बा l
कलम: आउर ‘आखर’ के भाई लोग एहिमे बहुते सहजोग कर सकेला लोग l
किताब: जरुर कर सकेला लोगl आ करबे करी लोग जे अगर अपना मातृभाषा के मरे-बिलाए से बचावे के होखे तब l इहो जाने के चाहीं की खाली ई ओहि लोग के जिम्मेदारी नईखे सब लोग के बा जे ई भाषा आउर संस्कृति से जुड़ल बा l अरे समय के पते ना चलल आउर चलके बेरा हो गईल! एगो नीहोरा बा l तहार राग बड़ा नीमन ह, जाएके बेरा कुछ गा के सुना द$ l अरे तू त लजाए लगलु !
कलम: त सुन$ बहिनी:
ना जाने अखियन में केतना जे लोर बा
कारी कारी अखियन में कारी कारी पुतरी
पलकन के खोंतवा से झांकेली कबूतरी
जेतना छलके ओतना भरि भरि जाय
ना जाने करेजवा में केतना हिलोर बा
ना जाने अखियन में केतना जे लोर बा l
किताब: अरे तू त रोवे लगलू, अच्छा फेरु भेंट होई l हम जातानी, ना त ई गाना सुनके हमरो रोवाई छुट जाई l चिंता मत कर$ सखी, सरस्वती माई के किरपा होई त फेरु भेंट-मुलाकात होई l
(कलम भर-भर आँख लोर लेहले किताब के जात देखतारी l)