सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

खुरपी

रउआ असहिष्णुता के तलवार
खींचतानी बार-बार
नकली लेख से रंग देतानी अखबार
केतना आदमी पढsतारे राउर कुतर्क
बेशर्मी के लमहर कुरता पहिन के
सड़ांध के साझा कर रहल बानी-
आचार्य, सम्पादक, पत्रकार, अतिसक्रियातावादी
बुद्धिजीवी ‘परजीवी’, सुविधाभोगी ‘सर्वहारा’
शब्द के जाल बुनेवाला बहेलिया
घात लगवले बईठल बानी
बानी बोलत जहर घोलत
रउरा काल्पनिक दुश्मन से बड़ा देश बा
देश खातिर कुछ कईनी हं अभी तक
बईठका में बईठ के बतकुंचन कईला के सिवाय
ओह मजदूर के बारे में भी सोचीं
जवना के संधर्ष के जिनगी जिए खातिर
रउआ मजबूर कईले बानी -
ओह किसान के बारे में भी
सोचीं तनी एक बेर भी
जे खेत में जिनगी भर
खुरपी चलावत रहता -
अगर नईखीं सोचत, नईखी देखत
स्वार्थ के माड़ा आँख में परल बा त
कवनो बात नईखे
बस एगो बात ईयाद राखीं
ओह खुरपी से भी
तलवार के काम
लीहल जा सकेला
जरूरत पड़ला पर !

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