जिनगी भर
आकाश के तरफ
ताकत ताकत
एक दिन
माटी में मिल जाई
डोर सपना के -
जे बन्हले बा
साँसन के माला के -
लोहार के भाथी अईसन
मन में सुख-दुःख
ऊपर-नीचे उठता गिरता !
सपना बीनत-बीनत
सपना बुनत-बुनत
साँझ हो जाता, अन्हार घेर लेता
ताना-बाना लउकत नईखे
जिनगी, एगो अधबुना सपना,
छूटल रह जाता दूआर पर
समय पीछे छोड़ के बढ़ जाता आगे,
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