रविवार, 6 फ़रवरी 2022

जिनगी भर 
आकाश  के तरफ 
ताकत ताकत 
एक दिन 
माटी में मिल जाई 
डोर सपना के - 
जे बन्हले बा 
साँसन के माला के -
लोहार के भाथी अईसन 
मन में सुख-दुःख 
ऊपर-नीचे उठता गिरता !
सपना बीनत-बीनत 
सपना बुनत-बुनत 
साँझ हो जाता, अन्हार घेर लेता  
ताना-बाना लउकत नईखे 
जिनगी, एगो अधबुना सपना,
छूटल रह जाता दूआर पर  
समय पीछे छोड़ के बढ़ जाता आगे, 
आ साँस के माला टूट जाता !

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