सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

खुरपी

रउआ असहिष्णुता के तलवार
खींचतानी बार-बार
नकली लेख से रंग देतानी अखबार
केतना आदमी पढsतारे राउर कुतर्क
बेशर्मी के लमहर कुरता पहिन के
सड़ांध के साझा कर रहल बानी-
आचार्य, सम्पादक, पत्रकार, अतिसक्रियातावादी
बुद्धिजीवी ‘परजीवी’, सुविधाभोगी ‘सर्वहारा’
शब्द के जाल बुनेवाला बहेलिया
घात लगवले बईठल बानी
बानी बोलत जहर घोलत
रउरा काल्पनिक दुश्मन से बड़ा देश बा
देश खातिर कुछ कईनी हं अभी तक
बईठका में बईठ के बतकुंचन कईला के सिवाय
ओह मजदूर के बारे में भी सोचीं
जवना के संधर्ष के जिनगी जिए खातिर
रउआ मजबूर कईले बानी -
ओह किसान के बारे में भी
सोचीं तनी एक बेर भी
जे खेत में जिनगी भर
खुरपी चलावत रहता -
अगर नईखीं सोचत, नईखी देखत
स्वार्थ के माड़ा आँख में परल बा त
कवनो बात नईखे
बस एगो बात ईयाद राखीं
ओह खुरपी से भी
तलवार के काम
लीहल जा सकेला
जरूरत पड़ला पर !

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

एगो ईहे बा ठाँव 
जहाँ बान्हिले  हम आपन नाव 
देखिले नदी के विस्तार आ बहाव 
अगर ई  माया  हS
तS हमरा थोडा माया चाहीं
जिनगी में साँस लेबे खातिर !
बेमतलब के बात  

लोहा गरम होता 
त हथौड़ा के चोट परता -
खुरपी बन गईल 
पानी में डला गईल 
धार बन गईल 
घास काटे खातिर 
इन्द्रधनुष आकाश में बा 
घास जमीन पर 
घास काटत काटत 
ऊपर देखेब  तs
हाथ काट लेब 
तब फेर काल्ह से 
घास के घरी हमरा खातिर !
जिनगी में बात त बहुते बा
इन्द्रधनुष बा, तरेगन बाड़े 
पाप बा पुण्य बा 
स्वर्ग बा नरक बा 
अमीरी बा गरीबी बा 
लेकिन बात घरबs तs रूखर होई 
घास घरबs तs चिकन होई !

रविवार, 6 फ़रवरी 2022

Haiku

Silence speaks loudly
Heart is a river in spate
Boatman oars the song
जिनगी भर 
आकाश  के तरफ 
ताकत ताकत 
एक दिन 
माटी में मिल जाई 
डोर सपना के - 
जे बन्हले बा 
साँसन के माला के -
लोहार के भाथी अईसन 
मन में सुख-दुःख 
ऊपर-नीचे उठता गिरता !
सपना बीनत-बीनत 
सपना बुनत-बुनत 
साँझ हो जाता, अन्हार घेर लेता  
ताना-बाना लउकत नईखे 
जिनगी, एगो अधबुना सपना,
छूटल रह जाता दूआर पर  
समय पीछे छोड़ के बढ़ जाता आगे, 
आ साँस के माला टूट जाता !